विदेशी मेहमान और ऑफिस का गरम माहौल

अप्रैल 12, 2010

विदेशी मेहमान और ऑफिस का गरम माहौल



दिन शनिवार समय ८ बजे और मैं अपने ऑफिस में । सोच रहा था की अब निकलु की तब निकलु । पता नहीं क्यों आज ऑफिस से जाने का मन नहीं कर रह है । मन कर रहा है की ऑफिस में कम से कम २ घंटे और रूक जाऊ और थोडा काम और कर लु । पर मेरे बॉस ने तभी मुझे जाने का हुक्म सुना दिया । कारण ये है की ऑफिस का माहौल आज थोडा थोडा गरम हो गया था । इसका मतलब ये नहीं ही ऑफिस में लाइट नहीं आ रही थी । दरसल मेरे ऑफिस में कोई बला ( बाला अर्थात महिला) नहीं है तो पूरे ऑफिस में दिनभर भर पूरी तरह वो सम्पूर्ण पुरूष वाला (मतलब आप समझ ही गए होंगे) माहौल रहता है । कोई कंही से भी उठता है और कंही भी गिर जाता है । किसी की भाषा पर अब कोई कण्ट्रोल नहीं है । जो मन में आये वो कहो । तो हर किसी को ये माहौल बड़ा पसंद आता है । और कोई चाहता भी नहीं की उसकी इस आजादी को कोई आ कर छीने । पर उस दिन कोई आ चुकी थी जो की दोपहर से हमारे ऑफिस में विदमान थी और बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हमारे साथ बातें कर रही थी और हम लॉन्ग थोडा थोडा समय निकल कर अपना अपना काम कर करे थे । अब आप सोचेंगे की उस महिला या स्त्री में एषा क्या था तो जनाब आपको मैं बता दू की वो महिला हम पर सालों शासन करने वाले अंग्रेजो के देश इग्लैंड से आई हुई थी । और मैंने किसी विदेशी महिला से शायद पहली बार आमने सामने बैठ कर बात की हो । और वो भी हिंदी भाषा में । वो जब तक ऑफिस में रही ऑफिस का माहौल ही दूसरा था । सब कोई आराम आराम से बात कर रहा था । बड़े ही नजाकत से हम एक दूसरे के साथ पेश आ रहे थे हालाँकि हम और दिनों में ऑफिस में कोई लड़ाई नहीं करते पर उस दिन का महौल कुछ और था । यही कारण था की मेरा मन ऑफिस में थोड़ी देर और रुकने का था । पर मेरे बॉस के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ । खैर अब में कर भी क्या सकता था मरता क्या न करता मैं भी घर जाने को तैयार हुआ और वो गुड नाइट का स्वरनाद अभी भी मेरे मस्तिष्क में गोल गोल घूम रहा है । और मैंने जो कहा वो पता नहीं उसको याद था भी या नहीं । पर वो कहते है न कि सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखाई देता है मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ । ऑफिस से निकलते वक्त सब कुछ बड़ा अच्छा वाला फील हो रहा था । मुझे उस दिन किसी बात कि उतनी चिंता नहीं थी । बार बार ऑफिस कि दुर्घटनाये फ्लेशबेक हो रही थी । और कई गाने मुझे स्वतः ही याद आ रहे थे । इसका कारन क्या था मुझे अभी तक पता नहीं चला । आज घर जाना सबसे बड़ा काम लग रहा था । और घरवालों पे गुस्सा कि घर को ऑफिस से इतना दूर क्यों बनाया । पर में ये बात लिखने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता था । क्योंकि उस दिन तो मन मेरा डोलिंग डोलिंग कर रहा था । वैसे किसी शायर ने ठीक ही कहा होगा जब किसी से पहली बार मिला होगा । आज स्टैंड पर किसी को देखने का मन नहीं था । और उस दिन बस भी जाते ही आ गयी । बस में सवारी उतनी नहीं थी जितनी होती थी आम दिनों । मैंने एक कोने में अपनी जगह बना ली । और ख्यालों में खोने लगा । उस दिन का मर्म और उस पर गर्म दोनों ही अपना कमाल दिखा रही थी । पता नहीं किस किस तरह मनमोहक खुशबु मेरे नाकों में आ आ कर जा रही थी । और मुझे पुनः ख्यालों में खोने को मजबूर कर रही थी । उस दिन बस में कौन क्या क्या कर रहा था मैंने कुछ भी नोट नहीं किया बस अपने में ही खोट नज़र आ रहा था । कि अचानक देखा मेरे सामने सीट खाली हुई और मैंने बिना चुके चौका मर दिया और अपने सभी साजो-सामान के साथ उस पर विराजमान हो गया और पुनः ख्यालों में खो गया । गनीमत ये रही कि मेरे स्टैंड आने से पहले मेरे एक मित्र का फोन आ गया वरना पता नहीं मैं अपने स्टैंड उतरता या दूसरे के ।   

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