यादों का घरोंदा

जनवरी 05, 2011

यादों का घरोंदा

 
ना नज़रे मिलाते है न झुकाते हैं,
देख कर उन्हें बस देखते जाते हैं ।
ना बोल पाते है न चुप हो पाते हैं,
देख कर उन्हें बस गुनगुनाये जाते हैं ।  
ना कुछ लिख पाते हैं न कुछ मिटा पाते हैं,
देख कर उन्हें बस लकीरें खींच पाते हैं ।  
ना चल पाते हैं न बैठ पाते हैं,
देख कर उन्हें ठगे से रह जाते हैं ।  
ना पास आ पाते हैं न दूर जा पाते हैं,
उनसे नज़रे मिला कर झुका जाते हैं ।
ना जाग पाते हैं न सो पाते हैं,
उनकी यादों में मदहोश हो जाते हैं ।
ना हँस पाते हैं न रो पाते हैं,
मुकुराते हुए मेरे आंसू बाहर आते हैं ।
ना मिलने कि खुशी न खोने का गम खाते है,
उनकी यादों को सीने मे जलाते हैं ।
ना सुन पाते हैं न समझ पाते हैं,
पर उनकी होंठों कि चाल समझ जाते हैं ।  
ना चाँद से न सूरज से दोस्ती जताते है,
मेरी तो बस उनसे है हस्ती यही बताते हैं ।
ना राम जपते हैं न रहीम पढ़ते हैं,  
दिल कि गहरायी मे वो बसते हैं ।
ना इंकार करते हैं न इकरार करते हैं,
उनके साथ वक्त बिताने का इंतज़ार करते हैं ।
ना उनका नाम लेते हैं न बदनाम करते हैं,
अपने जेहन मे चर्चा-ए-आम करते हैं ।  
ना काश करते हैं न उफ्फ करते हैं,
जितने पल बिताये साथ मे आज भी महसूस करते हैं ।   
ना डूब पाते हैं न तैरना सीख पाते हैं,
प्यार में दौर ऐसे भी आते हैं ।
ना उड़ पाते हैं न गिर पाते हैं,
प्यार को देख कर दूर से रो जाते हैं ।
ना सांस आती है न सांस जाती है,
बस और बस उनकी याद आती है ।
©csahab 

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