मेरे ऑफिस से घर और घर से ऑफिस जाने की यात्रा की कहानियाँ और दैनिक जीवन के कुछ लम्हों के साथ दिल से निकलने वाले कुछ अनछुए पहलू जिन्हें लिख कर मुझे अच्छा लगता है. मुझे आशा है कि आपको पढ़ कर भी अच्छा लगेगा.
बस का नहीं ऑटो वाले भैया को धन्यवाद एक बार पुनः आप सभी सेक्षमा चाहूँगा कि मैं पुरे ३ दिनोंके बाद ब्लॉग पर आया हूँ । इसके पीछे मेरी ही कुछकहानी है जिसे में बयां नहींकर सकता हूँ । पर सच मानिये लिखते वक्त बड़ा सुकून मिलता है । आज में सबसे पहले उस ऑटो वाले भैया को धन्यवाद देना चाहूँगा जिसने मेरी जान बचायी । अगर वो सहीसमय पर ब्रेक पर पैर नहीं रखता तो आज में कंप्यूटर पर ऊँगली नहीं रखता । तो धन्यवाद अनजान ऑटो वाले भैया । हुआ ये था कि सोमवार का दिन था धूप अपने चरम पर थी पता नहीं मुझे क्या हुआ मैं १० मिनट के लिए ऑफिस के बाहर चला आया और धूप का आनंद लेने लगा मतलब अपने काम से ऑफिस के पास वाले मार्केट में जाने लगा । काम करके जब में मार्केट से वापस आने लगा तो एक गोल चक्कर पड़ता है रास्ता उतना चला नहीं है जितना चलना चाहिए मैंने देखा रोड के दूसरी तरफ एक बड़ी ही सुंदर सी विदेशी महिला ऑटो का इंतज़ार कर रही है । सच मानिये मेरी रफ़्तार को वंही पर ब्रेक लग गया । और एक बात और अपनों मनना पड़ेगा जैसे धूप में शीशा चमता है उसी तरह वो विदेशी महिला चमक रही थी । उसका भी कारण था । उसके कम से कम वस्त्र । उसने सुपर मिनी स्कर्ट पहन राखी थी जिससे उसका आधे से भी जायदा शारीर दिखाई दे रह आता और धूप में चमक रहा था साथ में छोटी सी टीशर्ट जिससे धूप भी टकरा कर शर्मा रही होगी । खुदा कसम वो सच में बाला थी । उम्र कोई २०-२१ कि होगी । मैं बस उसको ही देख रहा था और मेरी सुधबुध खो सी गयी थी । और शायद मुझे ये भी याद नहीं टइ मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ कि तभी चीईईईई कि आवाज़ से किसी ने ब्रेक लगायी तो होश आया कि में एक ठीकठाक रफ़्तार वाली ऑटो के ठीक सामने खड़ा हूँ और शायद मेरी उस स्थिति का अंदाजा उस ऑटो वाले भैया ने भी लगा लिया और वो मुस्कुरा कर बोले कि देखो देखने में कोई बुराई नहीं है पर चश्मा लगा कर । मुझे बड़ी झेप का एहसास हुआ । पर एहसास फिर भी ना जागा । अभी भी दिल था कि मानता नहीं वाला हो रहा था । ध्यान रह रह कर उसी तरफ जा रह आता । ऑटो से बचने के बाद दिल धडकन ने गति पकड़ ली थी । पर उसको अब तक ऑटो नहीं मिली थी । उस दिन मुझे थोडा सा पझ्तावा हुआ कि मैं ऑटो वला क्यों नहीं बन गया । पर कोई नहीं दूर के ढोल हमेशा सुहावने नहीं होते । वो मुझे एस खेल कि शातिर खिलाडी लग रही थी क्योंकि सब ऑटो वाले उससे जायदा कि उम्मीद कर रहे थे पर वो अपने कपड़ो के हिसाब से कम कि । पर ऑटो वाले ठीक उसका औलता सोच रहे थे । उनको चाहिए था ज्यादा । मैंने कुछ देर रुकने का मन बनाया और सोचा कि अब ऑटो करा ही दू तो जायदा अच्छा है ।कंही कुछ उल्टा सीधा न हो जाये । इसी क्रम में में एक पेड का सहारा ले कर खड़ा हो गया और सोचने लगा कि कंही ये मोहतरमा अगर बस में चले तो रोज बस में दंगा भड़क जायेगा और रोज अग्निशमन दल को बस में आग बुझाने केलिए बुलाया जायेगा । पर इसका बस के बाकी लोग कतई बुरा नहीं मानेगे इतना तो मुझे पक्का विश्वास है । और मैं भी सहमंत हूँ । वैसे कई लोगो को मेरा ये व्यव्हार बुरा लग सकता है पर इसमे मेरा कोई दोष नहीं है । अगर आपके चेहरे पर कोई चमकती चीज़ टकराएगी तो आपकी निगाह तो जायेगी ही । और एक बात और कहना चाहता हूँ कि इस व्यक्ति विशेष लक्षण से पता चलता है कि मैं अपने ही पर्यायवाची का नहीं बल्कि अपने बिलोम का प्रेमी हूँ ।
बस में ब्लॉगर और अजीब सी उदासी कल २ दिनों के बाद जो लिखा उससे मेरे कुछदोस्त बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे थैंक्स लिखने ले लिए , आज पुरे दो दिनों के बाद कलम उठाई , और बहुत अच्छे जैसे कमेन्ट से मेरा उत्साह बढ़ाया । जिसने सच मैंने मुझे एक नए उत्साह का एहसास कराया है । कल ऑफिस मेंफिर थोडा बिजी था पर कल और आज दोनों दिन ब्लॉग लिखने का समय निकल लिया । कल ब्लॉग लिख कर बड़ी ही मस्ती के साथ ऑफिस से निकला । अंदर एक अजीब सा उत्साह था । शायद ब्लॉग लिखें कि खुशी थी या शायद कुछ और जो मैंने नहीं जनता । कल वही अपना घर जाने का समय पुराना था । रात के अँधेरे में एक बस का ब्लॉगर निकलता है जिसे लोगविपुल कहते है । वैसे मजाक मजाक मैं ये लाइन बड़ी अच्छी निकली या खराब ये तो आप ही लोग बताएँगे । खैर २ दिनों के बाद वापस स्टैंड पर एक निश्चितसमय परआनाबड़ाअच्छा लगा और १-२ चेहरे पुराने लगे थोड़े नए भी आ गए थे ।पर बस स्टैंड का माहौल नहीं बदल था एक नयी चीज़ हुई थी कि चूँकिगर्मी अपने चरम पर पहुच चुकी है तो एक के बजाये दो पानी वाले जरूर खड़े हो गए । जो मेरे सामने रहते तक बिजी रहते है । उनको साँस लेने तक कि फुर्सत नहीं रहती है । मेरे ये समझ में नहीं आता ही लोग कितने प्यासे है । चलो इसी बहाने कम से कम उनका तो काम चल जाता है और रोज़ी रोटी भी । लगभग १५ मिनट खड़े होने के बाद बस का आगमन हुआ । मेरी नज़र उस खैनी वाले को ढूंढ रही थी । वो मुझे आज नहीं दिखाई दिया । मैं बस के अंदर था और एक कोने में खड़ा हो गया था । आज अंदर से मन कुछ उखड़ा उखड़ा स लग रह आता । पता नहीं क्या चीज़ थी जो मुझे कम लग रही थी । और कुछ न होने का एहसास दिला रही थी । शायद उसका नाम मुझे नहीं पता था । में रह रह कर तडप रहा था और उसका नाम मेरे जेहन में नहीं आ रहा था । लगभग १० मिनट बाद मुझे सीट नसीब हुई पर ये खुशी भी मुझे ज्यादा देर नसीब नहीं रही और एक बुजुर्ग के आने के बाद वो उनके नसीब में स्तान्तरित हो गयी । मुझे कभी कभी बड़ा कोफ़्त होता है कि जब कोई अच्छी डील डोल वाली युवती बड़े ही दार्शनिक अंदाज़ में इंग्लिश के २ शब्दों में अपने उठने कि प्रार्थना करती है तो जब नारी के आगे विश्वामित्र कि नहीं चली तब तो में साधारण मानव हूँ जिसके अंदर मेरा स्वयं का दिल धक् धक् करता है । पर में किसी महिला के बजाये किसी बुजुर्ग या उम्र दराज महिला को सीट देना ज्यादा सही सोचता हूँ । और मैं खुद महिला सीट पर बैठने से परहेज़ करता हूँ और खड़े हो कर यात्राकरना ज्यादा पसंद करता हूँ । बाकी का सफर मेरा खड़े खड़े गुजरा जिसका मुझे कतई भी गुरेज नहीं है । क्योंकि मेरे से ज्यादा बुजुर्ग को सीट कि जरूरत थी । वैसे मेरे जैसे बस में मैंने कई लोंगों को देखा है जो स्वेक्षा से अपनी सीट बुजुर्ग महिला और पुरूष के लिए छोड देते है । तब मुझे और खुशी होती है । और कुछ लोग मुझे बस में बड़े अछे लगते है क्योंकि वो बस को संगीतमयी बना देते है । उनके नेपाली फोन में लगा बड़ा सा स्पीकर वो ऑफिस से निकलते ही आन कर देते है और पूरे रास्ते वो सबका मनोरंजन करते हुए जाते है । उनको इससे कोई मतलब नहीं कि किसी के साथ कितना चचा हुआ होगा पुरे दिन या कितना बुरा हुआ होगा वो अपनी मस्ती में चूर रहते है । इसमे मैंने कई बुजुर्गो को भी देखा है जो बस में अपने समय के हिट गानों को सुनते है और अपनी ही मस्ती में खोये रहते है । आज खड़े खड़े यात्रा करने में भी एक नया ही आनंद और सुख था ।
आज पूरे दिनों के बाद आपके सम्मुख हुआ हूँ । पिछले दो दिनों से कुछ भी न लिखा पाने का क्षमाप्राथी हूँ । पिछले २ दिन ऑफिस के काम में कुछ ज्यादा ही उलझा हुआ था जिसके कारण मैं अपने निजी ब्लॉग को अपडेट नहीं कर पाया । जिसका मुझे स्वयं बहुत दुःख है । ऐसा नहीं था की मैं ऑफिस के काम मैं इतना खो गया था की मैं थोडा समय भी नहीं निकाल सकता था । पर वो कहते है हरी खोजन को हरी चले हरी पहुचे हरी पास । कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ जब लिखने का मन करता तो कंप्यूटर खली नहीं मिलता और जब कंप्यूटर खाली मिलता तो लिखने का मन नहीं होता । आज दोनों का मिलन हुआ है तो पुरे दो दिनों के बाद आपके सम्मुख फिर से आया हूँ । मंगल मेरे लिए कुछ खास नहीं हुआ वही ऑफिस की भागदौड और वही काम । जब जाने का समय हुआ तो एक और प्रोजेक्ट चलो उसको भी खत्म किया और जाने की तैयारी शुरू की । जब समय देखा तो थोडा ज्यादा ही बता रहा था । फिर भी मैंने बहुत दिनों के बाद रात में ही बस का सफर करने की सोची । ऑफिस से स्टैंड पर जब पंहुचा तो आज का द्रश्य कुछ और था । और दिन यंह पर भीढ़ हुआ करती थी पर उस दिन सन्नाटा पसरा हुआ था । स्टैंड पर कोई नहीं था । मुझे लगा कंही मैंने आज कोई फैसला गलत तो नहीं ले लिया । लगभग १०-१५ खड़े होने के बाद मैंने देखा की ऑटो वालों की तो लाइन लगी हुई है और वो सब के सब मुझे अपने संभावित सवारी समझ कर मेरे आगे धीरे हो जाते थे । पर मैं तो बस का मुरीद । जैसे गोपियाँ कृष्ण की । कोई भी ऑटो वाला मेरा मन नहीं बदल पाया । मेरे ख्याल से उनकी बहुत से बद-दुआ मुझे लगी होगी । पर मेरा मन तो मेरी बस ले कर अपने साथ चल चुकी थी और अब तक मेरे सामने नहीं आई थी । उफ़ काश मैंने आज फिर कार मांग ली होती । मैंने सोचा था की बस मेरे सामने कड़ी हो गयी । और लग रह आता की जैसे मुस्कुरा रही है की आओ बैठो । मैंने उसकी इस अदा को भापा और बड़े प्यार से चढ गया । बस में ज्यादा सवारी नहीं थी । मेरे ख्याल से सब बस प्रेमी ही थे मैं टिकेट ले कर अपनी सीट पर बैठ गया । देखा कुछ लोग बस में लगभग सो चुके है । कुछ तो इतने गंभीर मुद्रा में सो रह थे की उनको इस बात का पता भी नहीं चलता था की बस कब रुकी और कब चल पड़ी । और लोंगो को मैंने बागी ही अजीब मुद्रा में सोते हुए देखा । किसी की टांग कंही और हाथ कंही और थे पर वो सोते हुए बड़े अच्छे लग रहे थे । मुझे उस दिन कैमरा वाले फोन की कमी सच मैं खली । पर कोई नहीं मेरा कोई हक नहीं बनता की मैंने बस में सोते हुए लोंगों की पिक्चर को अपने ब्लॉग में लगाऊं । टिकेट काटने वाले अंकल भी आधे सो आधे जाग रह थे । पर बस का ड्राईवर पूरी तरह सचेत था । जिसकी मुझे सबसे ज्यादा खुशी थी की ड्राईवर को अपने फर्ज की कितनी चिंता है । वो अपनी पूरी शिद्दत के साथ बस को खाली सड़क पर फोर्मुला वन कि तरह चला रहा था । ड्राईवर से मुझे फोर्मुला वन कि किसी कार मैं बैठे हुए सवारी या साथी का एहसास दिला रह आता फोर्मुला वन क्योंकि बस में हम दोनों ही पूरी तरह जाग रह थे । बाकि सब तो निद्रा में खोये हुए सपनो कि दुनिया मैं खोये हुए थे । आज रात्रि के सफर में मज़ा बहुत आया । समय का तो पता नहीं चला और न जाने कितनी जल्दी मेरा स्टॉप आ गया । स्टैंड पर बिताया हुआ १५ मिनट बस वाले कि रफ़्तार ने कवर कर दिए थे । काश रोज ड्राईवर इसे ही और इतने रफ़्तार में मुझे ऑफिस से घर पंहुचा दे तो क्या कहने । यही सोचता हुआ मैं अपने स्टॉप पे उतर गया ।