बस में नवविवाहिता और भीड़

अप्रैल 02, 2010

सबसे पहले क्षमा चाहूँगा की कल मैं ब्लॉग नहीं लिख पाया उसके दो कारण है । पहला ये की मैं परसों रात को बस से नही आया था दूसरा ये की कल मेरे ऑफिस मैं बहुत काम था । चूँकि बस से नहीं गया था और आने मैं एसा  कुछ खास नहीं हुआ था की लिखता और अगर झूठ लिखता तो शायद मुझे अच्छा न लगता क्योंकि ब्लॉग में अपनी मर्ज़ी से लिखता हू किसी के कहने से नहीं जो की रोज रोज कुछ ना कुछ लिखा ही जाये । क्योंकि ये मेरे रोज के जीवन का कम से कम २घंटे से ज्यादा बस मैं गुजरता है है तो मैं झूट बोल कर ग्लानी का पत्र नहीं बनना चाहता हूँ । दरसल मेरे मित्र का जन्मदिन था जिसके कारण मैं उसके साथ चला गया और घर देर से पंहुचा वो भी उसकी बाइक  से तभी कल कुछ नहीं लिख पाया । चलो कोई नहीं फिर भी मैंने एक चीज़ देखी की अगर आप बस मैं हो तो बाहर और अगर आप बहार हो तो कार में या बस मैं सुंदर सुंदर बलाए (बालाए) दिखाई देती है । और  जब आप बस मैं हो तो आपको मिलती है तो बस भीड़ भीड़ भीड़ । एक कोफ़्त शायद मेरे मन में शुरू से है । इसी ख्याल के साथ मैं कल जब ऑफिस से चला तो बड़ा चंगा मोड नहीं था चूँकि एक दिन का ब्लॉग मिस हुआ था तो थोडा अच्छा नहीं लग रहा था । पर आज तो स्टैंड का नजारा कुछ और था चारो तरफ सर सर सर सर और सर ही दिखाई दे रहे थे । आज तो मर गया । लगता है सरे ऑफिस वाले एक साथ बस पकड़ने आ गए क्या । लगभग सारे नए चेहरे थे । मैं उनमे कोई जान पहचान वाले चेहरे को ढूँढ रहा था । पर अफ़सोस कोई नहीं मिला । बस का इंतज़ार करते करते १५ मिनट निकल गए थे पर मेरे जैसे कुछ लोंग थे जिनको बस का अभी भी इंतज़ार था । बस आते देख खुशी हुई पर उसके बाद उसकी हालत देख कर उससे ज्यादा दुःख हुआ । उसमे बोरे की तरह लोंग  ठुसे हुए थे । पर ड्राईवर हो-सियार था उसने बस स्टैंड पर बस को नहीं रोकी हालाँकि तभी भी कुछ लोग उसके पीछे भागे पर रुकना उसका काम नहीं था । चलो कोई नहीं भागने वालों ने हमें फिर ज्वाइन किया अगले बस के लिए । अब हम सब अगली बस का इंतज़ार करने लगे । इंतज़ार कभी कभी बहुत अझेल हो जाता है । बस, लिफ्ट, महिलामित्र का पार्क या कंही इंतज़ार करते वक्त समय कटता नहीं । एक एक पल भारी लगता है । लगता है की अभी आ जाये तो चढ जाऊ अरे मेरा  मतलब बस मैं (कृपया इधर उधर की बात मत सोचे) । लो मेरी मुराद पूरी हो गयी और बस भी आ गयी मैंने सोच लिया था कुछ भी हो जाये एस बार चढ़ना है तो चढ़ना है । और वही हुआ मैं बस के अंदर और में भी भीढ़ मैं शामिल हो चूका था । लाइक अदर मांगो मनुष्य की भांति । पार आज बस का माहौल कुछ और था । हर तरफ भीड़ ही भीड़ थी । एक स्टॉप बाद कनडटर की आवाज़ आई की अब गेट मत खोलियो बस सवारी उतरियो । मैंने कहा लो आज तो सच मैं पंगा है । पर मैं इससे इतेफाक नहीं रखता । शायद तभी DTC को घाटा हो रहा है और शीला जी रो रही है और जनता उनके आंसु नहीं पोछ पा रही है उस पर से ये कनडटर दही मैं सही कर रहे है । हुआ भी कुछ ऐसा ही बस का गेट न ही खुला तो नहीं खुला । इस करनी मैं कुछ दैनिक यात्रीओं का भी साथ था जो कनडटर की हाँ मैं हाँ मिला रहे थे । वंही बस के एक कोने मैं आज कुछ गप्पिओं की मंडली जमी थी । बीच बीच मैं उनकी बात मेरे कानो से टकरा कर दिमाग में चकरा रही थी । उनमे से से एक बात ये थी की यार जो कहो चोर चोर होता है अगर वो सोच ले की आपका सामान चुराना है तो चुराना है एक बार मेरे सामने ऐसा ही हुआ । में बैठा , सामन का मालिक बैठा और चोर बैठा । पता नहीं कब चोर ने हम लोंगो के सामने बैग से मोबाइल , कैमरा और बहुत कुछ सामान निकाल लिया नहीं पता चला । और उस चोर ने जाते हुए हमसे बात भी की मैं तो उस चोर का मुरीद हो गया । मैं भी समझ गया वो आदमी गप्पी नहीं उनसब का बाप है । खैर वो उस समय उनसब का हीरो था और मेरे ख्याल से हमेशा ही हीरो रहा होगा । वंही बस की खिडकी वाली सीट पर आज कुछ और नज़ारा था एक नवविवाहिता को शायद बस मैं सफर करना सूट नहीं करता था लगता है तभी उनका सर बराबर खिडकी के बाहर ही रहा । उनके बगल मैं शायद उनकी सास थी जो बार अजीब अजीब मुद्राएँ बना रही थी । और पानी की बोटल को हाथ मैं थामे कुछ कुछ बुदबुदा रही थी । और नवविवाहिता की सेवा मैं सब लगी हुई थी । नयी बीवी होने के कुछ फायदे हैं । जो वही जाने जिसकी शादी हो चुकी हो । मेरा स्टैंड आ गया और मैं तो उतरा ।  

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